Main Thik Hun II मैं ठीक हूँ
कभी रोटी दूध, कभी दाल रोटी खा लेता हूँ
कुछ दांत ढीले हो गए पर दर्द छुपा लेता हूँ
वो जब कभी भी पूछते हैं खैरियत मेरी तो
सहजता से कह देता हूँ ,मैं ठीक हूँ ,🌀
घुटनों में थोड़ी तकलीफ भी रहने लगी है
चलते चलते कदम कभी अचानक रुकते
कभी रुकते रुकते थम थम के चल लेता हूँ
कोठे पर जाने को सोचना पड़ता है, मगर
रेलिंग के सहारे सीढियाँ भी चढ़ ही लेता हूँ
वो जब कभी भी पूछते हैं खैरियत मेरी तो
सहजता से कह देता हूँ ,मैं ठीक हूँ , 🌀
आँखे भी थोड़ी कमजोर हो गयी हैं , शायद
बड़े बड़े शब्दों को किसी तरह पढ़ लेता हूँ
जैसा पहले था,वैसा अब कुछ भी नहीं रहा
बच्चे बाहर चले गए मैं अकेला ही रह गया
खुद ही उदास होता खुद से ही हंस लेता हूँ
वो जब कभी भी पूछते हैं खैरियत मेरी तो
सहजता से कह देता हूँ ,मैं ठीक हूँ , 🌀
सुबह की कहानी शाम तलक भूल जाता हूँ
बच्चे पास नहीं अब,दूर से ही फोन कर लेते
आने का वक्त नहीं मिल पाता काज छोड़के
जीवनसंगिनी भी छोड़ गयीं साथबिन मौसम
बच्चे देहात में टिकना नहीं चाहते आजकल
शहर की हवा मुझे रास नहीं आती, क्या करें
सो चार कमरे के सदन में अकेले रह लेता हूँ
वो जब कभी भी पूछते हैं खैरियत मेरी तो
सहजता से कह देता हूँ ,मैं ठीक हूँ , 🌀
बूढ़ा हो गया हूँ सो हाथ भी कांपने लगे हैं अब
पास वाली कम्मो ताई रसोई बना के जाती है
दुःख दर्द का साथी अब ज्यादा कोई नहीं रहा
अब मैं हूँ,और मेरा एक परिचित वाला डॉक्टर
दोनों एक दूसरे से सबसे ज्यादा मिलते जुलते
दुःख तकलीफ होती है,उनको ही कह देता हूँ
वो जब कभी भी पूछते हैं खैरियत मेरी तो
सहजता से कह देता हूँ ,मैं ठीक हूँ , 🌀
धन्यवाद्
सुनीता श्रीवास्तवा
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