Jindgi Ki Kashmakash II जिन्दगी की कशमकश

कभी कभी समझ नहीं आता ,जिन्दगी मुझे कहाँ  ले जा  रही है 

 कभी ख़ामोशी ,कभी उदासी ,तो कभी गुनगुना रही है। 

 वो ही जाने, हर पल क्या क्या गुल खिला रही है  

कभी करती है आंखमिचौली तो कभी मुस्कुरा रही है ,

कभी सोचती  हूँ मैं सुकून से  ,तो लगता है जिंदगी मेरा माथा सहला रही है। 

सोचत्ती हूँ मैं ,इतना दर्द  क्यों है जिंदगी में ,क्यों जिंदगी मुझे रुलाये जा रही है ,

क्यों जिंदगी हर मोड़ पर मुझे आजमाए जा रही है ,

फिर ये अहसास हुआ अचानाक  कि , कुछ नहीं ,कुछ नहीं 

बस हर रोज जिंदगी हमें नया जीवन जीना सीखा रही है 

 

 धन्यवाद 

सुनीता श्रीवास्तवा 

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