Roj Balatkar II रोज बलात्कार


तब मैं सात साल की नन्ही सी गुड़िया थी 

वो तीस साल का बांका नौजवान आदमी 

अक्सर ही मेरे घर आया जाया करता था 

आजा मेरी बच्ची वो ऐसी आवाज लगाता 

कभी टॉफी तो कभी खिलौने ले के आता 

माँ बोली ,अंकल है बेटा डरो नहीं ,जाओ 

वो मेरे नन्हें से हस्त पकड़ गोद में बिठाता 

फिर क्या, मैं नन्ही मुन्ही नासमझ नादान 

उसकी नियति नज़र भावनाओं से अंजान 

मैं उसकी गोद में उछलती कूदती रहती

मैं उससे खेलती और वो.. मुझसे खेलता 

बेवजह ही मुझे देख मुस्कुरा जाया करता 

अम्मा बाबा तो पास में ही बैठे होते थे मेरे 

इसलिए मेरे पहने कपडे नहीं उतार पाता 

तब गुड टच बैड टच किसी ने बताया नहीं 

इसलिए मुझे कुछ भी समझ में नहीं आता 

मगर सच कहूं तो वो एक अबोध बच्ची का 

हर दूसरे रोज बलात्कार कर जाया करता 

तब मैं सात साल की नन्ही सी गुड़िया थी 

वो तीस साल का बांका नौजवान आदमी 

अक्सर ही मेरे घर आया जाया करता था 

धन्यवाद 

सुनीता श्रीवास्तवा 



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