Ladakpan Yaad Aaya || लड़कपन याद आया
यूँ ही बैठा था कि लड़कपन याद आया
नन्हे मुन्ने से तीन भाई बहन एक आँगन
एक दूसरे के साथ खींचातानी करते रहते
पुरे घर में हल्ला गुल्ला हुआ करता था
है स्मरण मुझे जब अम्मा तईयार करती
हम जाने कितना सताया करते थे उसे
अपने तरीके से नखरे दिखाया करते थे
जैसे ही अम्मा छुटकी के बाल को पुरती
मैं चुटिया खींच के भाग जाया करता था
छुटकी मुझ पर खीझ के चिल्लाती थी
अभी बताती हूँ ,बोल कर मुझे दौड़ाती
फिर पापा कान पकड़ खींच के ले आते
पहले समझाते न करो ऐसा ,गलत बात ,
फिर भी न माने तो दो चार चपात लगाते
मैं पिटता वो दोनों एकदम शांत हो जाते
बे नानुकुर सब फटाफट तईयारहो जाते
हाँ,कभी कभी हमारे उधम के चक्कर में
माँ रोटियां नहीं बना पाती थीं हमारे लिए
सब बिना टिफ़िन लिए स्कूल चले जाते
किन्तु दादा जी का दिल नहीं मान पाता
लंच ले हमारे स्कूल पहुँच जाया करते थे
विद्यालय से वापस आते फिर शोरगुल
अम्मा के हाथों से बने चावल दाल खाते
फिर थोड़ी देर के लिए सोने चले जाते थे
शाम को दादा जी पाठ याद करवाते थे
हमारी धूमचकड़ी पर डंडा दिखाया करते
वो भी क्या दिन थे रुपहले रंगीले सुनहरे
हमारी बदमाशियों से हमारा घर ही नहीं
रौशन पूरा गली मोहल्ला हुआ करता था
काश वो पलछिन फिर से लौट के आ पाते
सोच के मन ही मन में थोड़ा मुस्कुराया
यूँ ही बैठा था की लड़कपन याद आया
धन्यवाद्
सुनीता श्रीवास्तवा
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