Apne Ghar Ki Roti Kamate Hain Jo || अपने घर की रोटी कमाते हैं जो

 


कचरा नहीं अपने घर की रोटी कमाते हैं जो 

गंदे गंदे ढेरों में किस्मत रोज आजमाते हैं जो 

यूँ कूड़े वाले बोल कर उनकी तौहीन न करो 

इंसान हैं हमारी तरह उनको जलील न करो

हजारो लाखों कदम पैदल ही चलते जा रहे 

अपने थैले में घरवालों के सपने बुनते जा रहे 

रद्दी उठा उठाअपने घर में दिए जलाते हैं वो 

इनके भी अपने किस्से हैं हम लोगों की तरह 

कुछ तो नाम होते हैं हमारी आपकी ही तरह 

यूँ कचरे वाले बोल कर इन्हें नामहीन न करो

सत्य तो ये है कि गंदगी तो हमने मचा रखी है 

कभी कुछ इधर डालना कभी उधर फेंकना 

कभी सब्जी के छिलके कहीं घर का विष्ठा 

ऐसे या वैसे हमने मलिनता ही फैला रखी  है 

उस मैलेपन को  कंधे पर रोज उठाते हैं वो 

कोई चीज़ नहीं हैं ,इंसान ही हैं हमारी तरह 

हम जो गंध फैला रहे  हैं हर दिन चारों तरफ 

उसे ही साफ़ करने घर से निकल जाते हैं वो 

ताकि उनके घर भी चूल्हा जले हमारी तरह 

कचरा नहीं अपने घर की रोटी कमाते हैं जो 


धन्यवाद 

सुनीता श्रीवास्तवा 


नोट ---आज मैंने एक इंसान को बहुत जलील होते देखा ,मेरा दिल पिघल गया ,वो हमारे आपके भाषा में तो एक कचरे वाला था ,मगर एक इंसान भी था ,और वो हमारे ही फेंके हुए कूड़े को उठा कर अपने घर की रोटी कमा रहा है ,मगर कुछ बड़े लोगों की क्या फितरत होती है ,कि वो इन्हें अपने पैर की जूती भी नहीं समझते .. मेरा दिल भर आया तो मैंने ये कविता लिखी ,,,, 

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