Ker Apni Vijay Shankhnad II कर अपनी विजय शंखनाद

 


तू फिर से उठ ,आगे बढ़,फिर बढ़ता ही चल 

फिर एक बार कर नयी बुलंदियों का आगाज़ 

जब भी टूटती हैं कभी मेरे मानस की उम्मीदें 

आती है मेरे अंतर्मन से कुछ ऐसी ही आवाज 

आने वाली आँधियों से पीड़ा तो जरूर होगी 

आँखों में धुल होगी तो वेदना भी जरूर होगी 

धूमिल आँखों को खोल कर तू नयी राह बना 

आँधियों को चीर कर बस अपने कदम बढ़ा 

तू कर सकता है ,कुछ ऐसी आती है आवाज 

कांटे भी चुभेंगे ,रस्ते में पाषाण भी टकराएंगे 

तन दुखेगा, कभी अंतःकरण विरह भी होगा 

तेरे सुने सुने नयनों में जो अश्रु धारा बह जाती 

ना व्यर्थ जाने दे आंसुओं के उन नन्हें बूंदों को  

एक एक कतरे को चमकता हुआ मोती बना 

हर एक जखम को अपने डगर का फूल बना 

तू सजा सकता है, गर ह्रदय में तेरे है उन्माद 

कमजोर नहीं पड़ेगा ,खुद से अभी वादा कर 

कोई साथी हो ना हो ,एकला ही कदम बढ़ा

दे कर देख स्वयं को चुनौतियाँ तू एक बार 

सत्य पथ पर चलता चल ,तू आगे बढ़ता चल 

तू लड़ सकता है,कर अपनी विजय शंखनाद 

धन्यवाद् 

सुनीता श्रीवास्तवा 



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