Maine Beej Hi Galat Daale The || मैंने बीज ही गलत डाले थे
लड़कपन के दिन थे ,मैंने भी मिट्टी में पैसे बोये
सोचती थी कुछ दिनों बाद खूब पैसे उग जायेंगे
नन्हे नन्हे हाथ मेरे कभी पानी डाले ,कभी खाद
कभी जा के कोड़ आती ,कभी यूँ ही देख आती
रोज राह तकती ,आज तो पैसे का पेड़ उगेगा
फिर तो मेरे पास भी खूब पैसे ही पैसे हो जायेंगे
कुछ दिनों के बाद मेरीआस उम्मीद बुझने लगी
बालक मन था मेरा ,अब उदास भी रहने लगी
अरे कोई पैसे का अंकुर तक नहीं फूटा था वहां
धीरे धीरे उम्र बढ़ती गयी ,और मैं बड़ी होती गयी
बचपन की वो बात अब थोड़ी धूमिल सी हो गयी
जीवन की दूसरी उलझनों में वो बात भूलने लगी
एक दिन देखा दादी ने फेंकी थी आम गुठली
जाने क्या सूझी ,उसको गाड़ दिया आँगन में
एक दिन अचानक दिखे हरे नवजात पल्लव
आँगन के उसी कोने में नन्ही नन्ही सी पंखुड़ियां
कुछ देर तक उसे स्नेहिल नैनों से निहारती रही
ऐसा लगा जैसे कोई बच्चा अठखेलियां कर रहा
मेरा मन हर्षित ,उसको स्पर्श करने आगे बढ़ा
ऐसा लगा जैसे वो है एक कोमल नरम काया
उस छोटे से पौधे ने मुझे एक नया पाठ पढ़ाया
कि वो बचपन में मैंने बीज ही गलत डाले थे
अभी समझ आने लगा ,क्या बोना है धरती में
जिससे मेरे आँगन में हरे भरे पेड़ लहलहाएंगे
ऐसे ही तो नहीं कह गए हमारे बड़े बूढ़े हमसे
सही बीज बोयेंगे ,तभी तो सही फसल उग पाएंगे
धन्यवाद्
सुनीता श्रीवास्तवा
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