Kuch Aise Makar Sankranti Manayen || कुछ ऐसे मकरसंक्रांति मनाएं

रंग बिरंगे पतंग इधर उधर झूमे,हिचकोले खाये 

लाल नीले हरे गुलाबी आसमान में उड़ते जाये 

धरती से अम्बर तक नाच नाच बलखाते जाये 

कभी पेड़ों से अटके ,कभी हवा के झटके खाते 

कभी इनकी छत पर कभी उनकी छत पर आते 

लहराते इठलाते जमीन छू कर फिर उड़ जाते 

छोटे बड़े सभी आनंदित हों ,हाथों में ले के डोर 

मैं तेरी पतंग काटूंगा ,यही शोर बस चारों ओर 

कभी ऊपर जाये कभी,नीचे कहीं भी मूड जाये 

अपने साथ साथ औरों को भी खूब नाच नचाये 

एक पतंग कट जाती बस उसके पीछे दौड़ जाएँ 

अम्मा बनाती तिळ की लईया मूडी की लईया

लईया ले जाओ बच्चों नीचे से आवाज लगाती 

एक हाथ लईया, दूसरे में पतंग की पतली डोर 

बस एक दूजे से आगे बढ़ जाने की लगी होड़ 

आज तो हवा ने भी अपने खूब नखरे दिखाए 

किसी की पतंग ऊपर तो किसी की नीचे आये  

ठंडी बयार भी झूम झूम अपनी अदाएं दिखाए 

टोपी निकली स्वेटर निकला ,इतनी गर्मी आये  

हम सारे मिलकर कुछ ऐसे मकरसंक्रांति मनाएं 

रंग बिरंगे पतंग इधर उधर झूमे,हिचकोले खाये 

लाल नीले हरे गुलाबी आसमान में उड़ते जाये 

धन्यवाद् 

सुनीता श्रीवास्तवा 


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