Ugata Hua Suraj || उगता हुआ सूरज

 


हंस देता है जब उगता हुआ सूरज 

अनकहे ही बहुत कुछ कह जाता 

मैं चाहे भले ही शाम को डूब जावूं 

घनघोर अँधेरा बन के बिखर जावूं 

फिर सुबह हँसता हुआ ही आवूंगा 

फिर तुम काहे हो इतने मायूस से 

क्यों डरते हो जिंदगी के अंधेरों से 

ये जीवन है ऊपर नीचे तो होगा ही 

क्यों घबराना है अनचाहे थपेड़ों से 

मैं रात से लड़ता रहता हूँ रात भर 

तब कहीं किरणों की कलियाँ आके 

पुरे दिन को बनाती हैं सुनहरा सा 

सारी प्रकृति भी हंसती मुस्कुराती 

तुम क्यों भला हिम्मत हार जाते हो 

क्यों नहीं रात से लड़ने की ठानते 

हौसला तो रख के देखो मेरी तरह 

ये अँधेरा भी छंटेगा ,सुबह भी होगी  

खुशियों की किरणें भी खूब फैलेंगीं

तुम्हारा सुकून तुम्हारे हाथों में ही है 

कोई दूसरा कुछ करने नहीं आता 

हंस देता है जब उगता हुआ सूरज 

अनकहे ही बहुत कुछ कह जाता



 धन्यवाद् 

सुनीता श्रीवास्तवा 


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