Main Akeli Gunahgaar Kaise Hui || मैं अकेली गुनहगार कैसे हुई
कुछ शरारत तो तुमने भी की थी
फिर अकेली मैं गुनहगार कैसे हुई
मैं तो चल ही रही थी अकेले अकेले
तुमने ही आके पकड़ा था मेरा हाथ
मेरे पास आये मुझे अपना बनाया
मैं सीख ही गयी थी खामोश रहना
तुमने फिर से बोलना सिखाया मुझे
छोड़ दिया था लोगों से मिलना भी
भूल गयी थी लोगों को अपनाना भी
चाह भी रह नहीं गयी थी हंसने की
फिर से मुस्कुराना सिखाया था मुझे
अब जब फिर से जिंदगी जीने लगी
मैं भी तुम्हें अपना समझने लगी हूँ
पलट के हाथ थाम लिया तुम्हारा
सब फिर से अच्छा भी लगने लगा
फिर तुम जाने की बात करते हो
क्यों हाथ छुड़ाने की बात करते हो
तुम नहीं तो अकेली हूँ अधूरी हूँ मैं
तुम भी तो कहा करते ही थे मुझसे
तुम्हारे लिए कितनी जरूरी हूँ मैं
फिर अब ये अचानक बेरुखी क्यों
मैं ही हर बार कठघरे में खड़ी क्यों
कुछ शुरुआत तो तुमने भी की थी
फिरअकेली मैं जबाबदार कैसे हुई
धन्यवाद्
सुनीता श्रीवास्तवा
कोई टिप्पणी नहीं
Thanks For Reading This Post