Bhole Bhale Sapne Mere || भोले भाले सपने मेरे

 


भोले भाले सपने मेरे ,नयनों में नित पाले हैं 

मनमाने से हैं ,कभी जलते हैं बुझ  जाते हैं 

कभी हंस देते  ,कभी डगमगा भी जाते हैं 

मन है मेरा बहुत चंचल  ,मचल जाता है 

सोते हुए आँखों में चमकते हैं कई रंगों में 

दिन के उजाले में उलझ जाते है लोगों में 

मगर मुझे ज्ञात है मेरे सपने मेरी अमानत  

इनको पंख देना है मुझे उड़ जाने के लिए 

बातें करेंगे ये  खुले आसमां से एक दिन 

जैसे कली जब खिले वो फूल बन जाती है 

खुशबु बन बागों गलीचों में बिखर जाती है 

भानु भी तो भेदता है यामिनी को हर दिवा 

तब जाके फैलता है प्रकाश इस सृष्टि में  

मुझे सिखाने ही तो आये ये सब प्रकृति में 

थोड़ी पीड़ा भी होगी मुझे इस उड़ान में 

ऐसे ही नहीं पहुँच सकता ऊँचे आसमां 

पता है फ़तेह करना नहीं इतना आसान 

झुकना नहीं है ,बस अब रुकना नहीं है 

जानता हूँ मैं निशा के शयन के बाद ही 

बिखरते अप्रतिम श्वेत-निश्छल उजाले हैं 

भोले भाले सपने मेरे ,नयनों में नित पाले हैं 



धन्यवाद 

सुनीता श्रीवास्तवा 

"इस कविता मैं (रचनाकार सुनीता ) ये कहना चाह रही हूँ कि ,सपने आसानी से पुरे नहीं होते ,मन इधर उधर मचलता है ,मगर ठान लिया तो मुसीबतों को चीर कर विजेता बन सकते हैं"। .. 





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