Tumahre wo nanhe nanhe se kadam II तुम्हारे वो नन्हे नन्हे से कदम



आज भी याद है मुझे तुम्हारे वो नन्हे नन्हे से कदम

जब पहली बार तुमने खुद से ही दौड़ लगायी थी  

वो खटिया पकड़ पकड़ के खड़े हो जाना तुम्हारा

 गिरना फिर गिर के खुद से ही उठ जाना  तुम्हारा

अजी सुनती हो,गुड़िया अब चलने लगी है हमारी
 कुछ ऐसी आवाज तुम्हारी अम्मा को लगायी थी
 तुम्हारी अम्मा भी दौड़ी-दौड़ी आयी कमरे से 
और वो भी तुम्हें देख के मंद मंद मुस्कुरायी थी 
तुम्हारे चलने की थप थप की आवाजें सुन सुन के
 मैंने तुम्हें एक सूंदर सी पायल तुम्हें पहनाई थी 
फिर तुम जब भी चलती ,छम छम छम करती 
ऐसा लगे कोई नन्ही अप्सरा उतर के आयी हो
 बड़ा ही अनमोल था वो दिन हमारे जीवन में 
जब तुम खुद से दौड़ हमारी गोद में आयी थी  




धन्यवाद् 
सुनीता श्रीवास्तवा 



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