Bachpan Ki Wo Rakhi II बचपन की वो राखी
बचपन की वो राखी याद बहुत आती है मुझे
दादी हमारे हाथों में मेहंदी लगाया करतीं थीं
और भाई उस पर अपना हाथ मार दिया करता
अम्मा मुझे सुबह सुबह परी सा सजाया करती
भाई दौड़ा के मेरे बाल बिगाड़ दिया करता
मैं भी उसके बाल नोचने को दौड़ जाया करती
अगले पल हमारा झगड़ा शुरू हो जाया करता
फिर वो प्यार से मेरे बालों को सवांर दिया करता
कितने प्यारे थे लड़कपन के अपने राखी के दिन
राखी तो बड़े ही प्यार से भाई बंधवा लिया करता
मिठाई मुझे दिखा दिखा खुद खा जाया करता
फिर से घर में चिल्ला चिल्ली शुरू हो जाता
अम्मा फिर से झगड़ा सुलझाने आ जाती थीं
वो पुराने दिन कितने मस्ती भरे हुआ करते
दादा जी राखी बँधायी दस रूपये दिया करते
और भाई बस मुस्कुरा के भाग जाया करता
आज मैं अलग शहर में हूँ ,वो अलग शहर में
गलियां सुनी ,घर सुना लगता है राखी में अब
बीती हुई वो बातें रुला बहुत जाती है मुझे
बचपन की वो राखी याद बहुत आती है मुझे
धन्यवाद्
सुनीता श्रीवास्तवा
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