Ek diya II एक दिया
एक दिया जो ताउम्र जलता रहा
मगर किसी से कभी भी ना कहा
कि मैं जल रहा हूँ ,मैं तकलीफ में हूँ
कोई आके मुझे बचा लो
कभी आवाज नहीं दी ,
कोई आके मुझे बुझा दो
औरों के लिए खुद को जला दिया
जलते हुए सबको रौशनी दे गया
बल्कि बुझते हुए वो और तेज हो गया
कभी किसी से शिकायत नहीं की
किसी को नहीं कहा ,उसने क्या किया
किसके लिए दी कुर्बानी ,किसको दी रौशनी
उसने बुझते बूझते भी कहा
मुझे और जलाओ ,मैं जलता रहूँगा
अपनी लौ से उजाला करता रहूँगा
मुझे इस बात का कोई गम नहीं
कि मैं निरंतर जल रहा हूँ
बल्कि मैं खुश होता हूँ ये सोच कर
कि मैं ज़माने को रोशन कर रहा हूँ.
धन्यवाद्
सुनीता श्रीवास्तवा
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