Aasaan Nahin Hai Grih Swamini Banna || आसान नहीं है गृह स्वामिनी बनना
इतना आसान भी नहीं है गृह स्वामिनी बनना ,
अपना आँगन छोड़ के दूसरे आँगन में जाना पड़ता है।
कुछ नए रिश्ते जुड़ना ,कुछ नए नियमों में बंधना ,
कलम किताबें छोड़ के बेलन चौकी उठाना पड़ता है।
अगर गलती से रोटियां कहीं कम फूली रह गयीं तो ,
घर में ग़ुस्से से फुले हुए लोगों को मनाना पड़ता है .
खुले आसमान में उड़ने की आदत छूट सी जाती है ,
अपने हाथों से ही अपने पर को काटना पड़ता है।
चूड़ियों की छन छन ने छीन ली कलाई की घड़ियाँ
आधुनिक कपडे छोड़ के पहननी पड़ती हैं साड़ियां
विराम लग जाते हैं अपने ख्वाहिशें ,अपने सपनों पर
दूसरों के सपनों को हमेशा अपना बनाना पड़ता है।
अगर कभी भी रात को सोने में देर हो जाये
तो भी सुबह जल्दी बिस्तर से निकलना पड़ता है।
धन्यवाद्सुनीता श्रीवास्तवा
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