Bachpan Ka Wo Mela || बचपन का वो मेला


कितना अलग सा था वो बचपन का  वो मेला ,

नए नए कपडे पहन के बस यूँ ही इठलाना। 

मैं भोपूं लूंगा ,मैं गुब्बारे लुंगी,इस बात पे नखरे दिखाना ,

जब भीड़ में मूर्तियां न दिखें ,पापा के कंधे पे चढ़ जाना ,

मां थामे ऊँगली हमारी ,कहीं हम खों ना जाएँ मेले की भीड़ में ,

धक्का धुक्की ,खूब सारे  झूले ,और बच्चों का रेला ,

कितना अलग सा था वो बचपन का  वो  मेला। 

आलू चाट जलेबी खाना ,लड़ते भिड़ते आगे बढ़ जाना  ,

पों पों करके चूं चूं कर के ,उछल उछल के शोर मचाना ,

चाहे कोई कितना रोके, सब दुकानों में रुक जाना 

खूब सरे खिलोने ले के ,भर लेते थे झोला 

कितना अलग सा था वो बचपन का  वो  मेला 


धन्यवाद् 
सुनीता श्रीवास्तवा 


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