Meri Kalam ( घर परिवार)



 बचपन की किलकारियां गूँजतीं हैं जहाँ ,

दादा दादी की कहांनियां बोलतीं  हैं जहां ,

सूखे जिस छत  पर  पापड़ और अचार ,

उसको कहतें हैं हम अपना घर परिवार। 

वो भाई बहनों के खट्टे मीठे  नोंक झोंक ,

वो गुस्से में एक दूसरे के बालों की खिंचायी, 

सर्दियों में बने दादी के स्वेटर का प्यार ,

उसको कहतें हैं हम अपना घर परिवार। 

घर की छत से देखना इंद्रधनुषी बादळ 

वो सुबह सबेरे चिड़ियों की सुरीले  संगीत ,

वो चारदीवारी ,जहाँ मिलतीं हैं खुशियां अपार ,

उसको कहतें हैं हम अपना घर परिवार। 

वो मां के आँचल में नखरे दिखाना ,

वो पापा की डांट डपट से थरथराना ,

जहाँ हँसता हुआ मिलता है हर इतवार ,

उसको कहतें हैं हम अपना घर परिवार। 






धन्यवाद् 
सुनीता श्रीवास्तवा 



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