Man Ki Vyatha || मन की व्यथा
किससे कहूं मै व्यथा ,कौन सुनेगा मेरी
इस भरी दुनिया में कोई अपना नहीं है
सलाह सबने दिए ,साथ किसी का नहीं
मन होता है कभी रोवूं फूट फूट कर
बोल दूँ मन की व्यथा किसी को जा
शायद जी हल्का हो जाये मेरा ,मगर
एक टीस सी उठती है मन ही मन में ,
नहीं अब किसी से कुछ कहना नहीं है
ये चुप्पी ही है मेरी जीवन संगिनी अब
नहीं और कोई अब मेरा गहना नहीं है
धन्यवाद्
सुनीता श्रीवास्तवा
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