Fir Main Kyon Nahin || फिर मैं क्यों नहीं


जब भी मैं मायूस होती हूँ ,अकेलापन सा लगता है 

ऐसा लगता है कोई साथ नहीं मेरे 

फिर ख्याल आता है कि ,चाँद भी तो अकेला है गगन में 

जो अकेले ही स्याह रातों को उजाला देता रहता है 

तो सोचती हूँ ,फिर मैं क्यों नहीं ?

माना मंजिल है दूर , ठोकरें भी लगेंगी मुझे 

फिर ख्याल आता है कि,एक  चींटी भी दीवार पर गिरती फिसलती है 

पर  हिम्मत नहीं खोती कभी ,

तो सोचती हूँ ,फिर मैं क्यों नहीं ?

चलूंगी तो राहों में  काँटे भी  मिलेंगे ,मुश्किलें भी आएँगी 

फिर खयाल आता है ,अगर सब कर सकते हैं 

फिर मैं क्यों नहीं ?

धन्यवाद् 

सुनीता श्रीवास्तवा 



 










 







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