Bachpan || बचपन
कितने हसीं थे वो बचपन के पल ,सारी दुनिया से निश्छल
न कुछ पाने का डर ,न कुछ खोने का डर
न किसी के आने का ग़म ,ना किसी के जाने कीचिंता
बस जिया करते थे अपनी ही धुन में ,अपनी ही मस्ती में
बस अपना छोटा सा घर और मां का आँचल
ना सुबह का पता ,ना शाम की खबर
ना खाने की फिकर ना सोने की फिकर
जब जीते थे हम जिंदगी का हर एक पल
मेरे हर नखरे अच्छे लगते थे मेरी मां को
दादा दादी की कहानियां ,परियों का फ़साना
बारिश में कागज की कश्ती बहाना ,हर मौसम मस्ताना था
हर पल हम थे चंचल ,कितने हसीं थे वो बचपन के पल
ध्यन्यवाद
सुनीता श्रीवास्तवा
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