मैं बहुत थक गयी हूँ II Main Bahut Thak Gayi Hun
मैं बहुत थक गयी हूँ यूँ चलते चलते
वक़्त की आँधियों से यूँ लड़ते लड़ते ,
हर पल एक नयी जंग ,नयी चुनौती
एक नया सफर उलझनों से भरा हुआ,
याद नहीं मुझे ,कब सुकून से सोई थी ,
जाने कब लोट पोट हुई थी हँसते हँसते।
कहते हैं जीवन के दो पहलु होते हैं,
कभी चढ़ाव तो कभी उतराव होते हैं,
मेरा जीवन में कब होगा उतराव का पल,
दिन निकल जाते हैं यूँ ही समझते समझते।
सब समझाते हैं मुझे अपनेअपने हिसाब से ,
कह जाते हैं अपनी बातें सारी बेबुनियाद से,
खामोश हो गयी हूँ मैं भी सबकी सुनते सुनते।
जाने कब थमेगा ये तूफ़ान मेरी जिंदगी का ,
जाने कब मिलेगा आराम यही सोचती रहती हूँ ,
एक उम्र निकल गयी यूँ ही गिरते सम्हलते।
मैं बहुत थक गयी हूँ यूँ चलते चलते।
धन्यवाद्
सुनीता श्रीवास्तवा
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