Muskaan Jindgi Ki II मुस्कान जिंदगी की


फूलों से सीखा मैंने बेवजह मुस्कुराना ,

कांटो के  बीच रहकर भी ठहाके लगाना। 

कभी कहते नहीं अपनी चुभन किसी से ,

कभी बताते नहीं अपना दर्द किसी को 

कभी की भी नहीं किसी से शिकायत ,

जब भी मिलो उनसे बागों में जाकर  

हँसते हुए करते हैं हर किसी का स्वागत। 

रिश्ते निभाना तो कोई सीखे  इनसे ,

कांटे भी है और भौरें भी हैं  इनके जीवन में  

ढल जाते हैं सबके साथ सबके प्यार में ,

नहीं होते हैं कभी किसी से भी आहत ,

हर मौसम में  करते है मस्ती हवाओं के साथ 

बस देखा हैं हर  वक़्त इनका खिलखिलाना। 

फूलों से सीखा मैंने बेवजह मुस्कुराना ,

कांटो के  बीच रहकर भी ठहाके लगाना।





                                                                 धन्यवाद् 

सुनीता श्रीवास्तब 

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