मेरी परछाई है II Meri Parchai Hai


यही जीवन की कड़वी सच्चाई है ,

जब भी चला ,अकेले ही चला मैं ,

साथ चले वो सिर्फ मेरी परछाई है. 

खामोशी से चलते हुए कभी कभी ,

जब भी मुड़ के देखने की कोशिश, 

उसे हमेशा अपने पीछे ही देखा ,

छूट गए कहीं दिल के रिश्ते नाते, 

कोई अपना नहीं ,कोई सगा नहीं, 

बस खुद से ही खुद की  लड़ाई है. 

कहने को तो बहुतेरे हैं बने अपने ,

एक वही है जो मेरे पीछे आयी है। 


धन्यवाद् 

सुनीता श्रीवास्तवा 




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